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नहीं...
नहीं एक दिवस का...
नहीं एक...
“
नहीं एक दिवस का शिक्षक-दिन,
सब सक्रिय हर दिन और हर पल।
बिन रुके हुए ज्ञान की पावन गंगा,
अंतस्तल में बहती रहती है अविरल।
@ डी पी सिंह कुशवाहा @
”
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