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नारी जहाँ...

नारी जहाँ थी पूजी जाती क्या बंधु यह वही है देश ऐसे हैं हालात विचरते भेड़िये बदल बदलकर वेश। अब दुर्गा का वीभत्स रूप धर असुरों का संहार हूँ दुष्टों पर भारी पड़ती जो मैं खुद वो तलवार हूँ । रंजना माथुर अजमेर राजस्थान मेरी स्वरचित व मौलिक रचना ©

By Ranjana Mathur
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