“
मुस्कान...
चेहरे पे मुस्कान या फिर खिलखिलाती हंसी
जिंदगी के जैसे मायने ही बदल दी
ना जाने कबसे मुस्कान ढूंढ रही थी
और अल्हड़ भोर की किरणें हौले से कह गयी
घना अंधियारा तो बादलों की आगोश में छिपा बैठा है
पर "मुस्कान" जिंदगी के हर लम्हों में बिखरी सी है
किसी के छलकते आंसू पोंछकर तो देखो
धूप की तपिश में छांव बनकर तो देखो
"मुस्कान" तो मुस्कुराकर खुद गले लग जायेगी...
”