“
मुझे बुला यहां जल्दी लौट गई,
जरा सा प्यार तुझे मैं दे न पाया मां।
तू कैसी थी ये भी तो न जान सका,
अमृत की कुछ बूंदें ही ले पाया मां।
तेरे प्यार के अमृत की ये बूंदें मैं,
आशीष दे इस जग में बिखरा पाऊं मां।
मैंने जग से पाया है बहुत अधिक,
कर कुछ वापस तेरे पास आऊं मां।
@ डी पी सिंह कुशवाहा @
”