“
|| मर्यादा ||
ये वो शब्ध है जिसने ज़िंदगी पिरोइ भी तो बिगारी भी ...
इसके बिना सब कुछ व्यर्थ है |
कैसे??
मर्यादा मे बोलो वर्ना लोग अपशब्ध का स्वच्छंद से प्रयोग कर देंगे
मर्यादा मे कर्म करो अन्यथा लोग आपको वृषभ समझेंगे
मर्यादा मे स्नेह करो कहीं आपका स्नेह दुर्बलता की कड़ी ना बन जाए
|| मर्यादा को जीवन का मूल मंत्र बनाओ ||
”