“
लब्ज ए जिंदगी
के बेरंग जिंदगी में
अब कोनसे रंग बाकी है |
नूर में अशको की
घनी घनी झाकी है |
की पिघल जाये हम भी बर्फ की तरह
पर वो गलिया भी क्या
जहाँ अपनेही पराये हो,
यु तो अपनेपन की दास्ताने
हमने भी ताकी है |
नूर में अशको की
घनी घनी झाकी है |
-rekha
”