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कर रही...
कर रही कलोल मुझ...
कर रही कलोल...
“
कर रही कलोल मुझ से ये मेरी तन्हाइयाँ
हँस रही है आज मुझपे फिर मेरी परछाइयाँ
क्या कहूँ किस से कहूँ कौन समझेगा मुझे
बढ़ती जाती है मुझ ही से मेरी ही रुसवाईयाँ।
©रुचि मित्तल
”
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