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किताब से...

किताब से भरे बाजार में से सोचा चुनूं एक किताब ख़ुद के लिए, तनहा बैठ के कहीं छुपाऊं गमों को मेरे, जिंदगी तो इस किताब की तरह है, किताबों की पन्नें तो खतम हो जाएंगे, पर इस दिल के ग़म कम नहीं होंगे मेरे।

By Pujashree Mohapatra
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