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         कहू...

         कहूं क्या.... बहुत कठिनता से सजी है नियामते यहां , लपटों में अपने आप को झोंका हूं । कहने वाले तो कहकर स्वतंत्र हो जाते हैं, लोग!! दिल के पड़े घाव कह देते हैं छाले कहां से उठकर आए हैं ।                         –धर्मवीर राईका

By Dharm Veer Raika
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