Dharm Veer Raika
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कहूं क्या?? दुनियां लगी थीं बदनाम करने में, हमने सुकून का आशिया ठान लिया, उड़ता पंछी भी आया हमारे मेहमान, हमने उसे भी अपने हिस्से को बांट दिया। ✍️✍️✍️ DHARM VEER RAIKA

मेहुल की बुंदे घायल करने लगी, कलिया भी रुलाने को लगी है, जरोखे से झांका तो आभा चमकी, वो चमक भी मुझे किसी की याद दिलाने लगी। ✍️✍️ धर्मवीर राईका

कहूं क्या?? हर युवा की अलग थलग कहानी है कोई इश्क या मोहब्बत कहे यह उसकी जवानी है। –धर्मवीर राईका

कहूं क्या?? बोल ऐसे बोलो की अगले को सुकून मिले, रुलाओ ऐसे की अगले के आंसु के सागर बहे, और खेल ऐसा खेलों की कोई दूसरा ना खेल सके, मुस्कुराहट ऐसी दो की आंखें भी हंस सके।                                    –धर्मवीर राईका

कोई मुझे समझदार कहे यह कैसे यकीं होता है, कोई मुझे दिवाना कहे यह मुझे अच्छी तरह से जानता है ।          –धर्मवीर राईका

कहूं क्या?? तुम अपनी अक्ल का दुश्मन बना बैठा, जो तेरे साथ थे उनको बिछोह बैठा, आज भी वो ही तकरार है तेरी वाणी की, कल अकड़ थी आज सयानी होकर बैठा।           –धर्मवीर राईका

कहूं क्या??? यहां कलियां भी झुकने को तैयार थी , कस्तिया मिटने को तैयार थी, फिर किस बात का गुरुर है ,  लाला!! आज यहां है कल कहीं और होंगे –DHARM VEER RAIKA

कहूं क्या??? छोटी खुशियों से बड़ी पा सकते हैं, रोना छोड़कर मुस्कुराना सीख सकते हैं, मेहनत करना अज्ञात राहगीर सीखा सकते हैं, मगर खोई खुशियों को वापिस मिला सकते हैं।            –धर्मवीर राईका

यह हस्तियां भी बड़ी नाजुक हैं किसी पर हावी हो ही जाती है, और यह नाव  किनारे पर झुक जाए तो आखिर डूब जाती है । –धर्मवीर राईका


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