यह तड़कती चूड़ी खनक कैसे गई , यह गुमसुम नारी तेरी कैसे हो गई, कुछ तो कमाल हुआ है इश्क का, मुझे समझ नहीं आ रहा यह हार कैसे गई । –धर्मवीर राईका
कहूं क्या.... बहुत कठिनता से सजी है नियामते यहां , लपटों में अपने आप को झोंका हूं । कहने वाले तो कहकर स्वतंत्र हो जाते हैं, लोग!! दिल के पड़े घाव कह देते हैं छाले कहां से उठकर आए हैं । –धर्मवीर राईका
माना कि अंधियारा है मेरे आशियां में , जुगनू को बिठाकर रोशनी कर लूंगा, तुम आए तो होगा अलग ही प्रकाश , आनंद मंगल से घी का दीप जला दूंगा। –धर्मवीर राईका
सोचा था लोग गुलाब को पसंद करते हैं , मैं भी जिद में निकल पड़ा , फूल तो टूटा नहीं खुशबू के सदमे में, कांटो से छलनी हो बैठा हूं ।। –धर्मवीर राईका
आज भले ही नाम मत ले जुबा पर कोई गम नहीं मुझे , कल तेरे पर ही लिखी किताब तू खरीदती घूमेगी बाजार में , और नहीं मिलेगी तुम्हें वो किताब जिसमें तुमको काली तस्वीर में दर्शाया है , कहना तो पड़ेगा धर्म वीर की किताब मिलती है क्या इस बाजार में । –धर्मवीर राईका
आज भले ही नाम मत ले जुबा पर कोई गम नहीं मुझे , कल तेरे पर ही लिखी किताब तू खरीदती घूमेगी बाजार में , और नहीं मिलेगी तुम्हें वो किताब जिसमें तुमको काली तस्वीर में दर्शाया है , कहना तो पड़ेगा धर्म वीर की किताब मिलती है क्या इस बाजार में । –धर्मवीर राईका
बहुत नसीब वाला था ऐसा पंडित जी कहा करते थे , बहुत प्यारी जान मिलेगी तुझे ऐसा करके हंसाया करते थे , पढ़ते थे वो कुंडली मुझे समझ नहीं आई , उसमें भी लिखा था कुछ इंतज़ार करना पड़ेगा । तुझे – धर्मवीर राईका
मुलाकात फिर करेंगे आता हूं वापस , बस में देरी हो रही है निकल जायेगी , अब जाने ही दे मुझे पंख लगाने , अबकी बार आया तो कोई तोहफा लेकर आऊंगा। जरूर –धर्मवीर राईका