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_कहीं...

_कहीं बादशाही सरेआम कहीं गुलामी से इंकार हैं,_ _ज़िंदगी के उतार चढ़ाव से कैसा तकरार हैं,_ _कहीं राहे मुश्किलों से भरा कहीं मंज़िल हौसलों से मिला,_ _बेशक हो सकता हैं झूठ का सफ़र पर कहीं सच्चाई की डगर अब भी बरकरार हैं।_

By Rani Sah
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