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इक रात फिर...

इक रात फिर यूं ही गुजर गयी कुछ सपनों को समेटकर कुछ अरमान आंखों में बंदकर गुमसुम आंखें खिल सी गयी धूप का टुकड़ा चौखट पे बिखरा देखकर.....स्वाती

By Swati K
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