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है आरजू कि...

है आरजू कि फलक से जमीं जुड़ जाए मुंतज़िर वो, बस रस्ता खुद-ब-खुद मुड़ जाए , मुसव्विर की जिद भी भला पूरी होती है ? बस सूकून से हो ,  जिनकी कुर्बत वो रोज होती हैं।

By Aditya Anand
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