जो ठुकरा दिया हुक्मरानों को किया खातिर गुमनामों को , ज्यों भनक लगी पादशाह को ये चल पड़ा तख्त छोड़ पूरा करने अपने अरमानों को ।
ले वक्त से सहमति ख्वाबिदा निश्चित होने लगे हैं , मयस्सर होने लगा तुला ऐसा भी मुंतजिर अच्छे भी चर्चित होने लगे हैं।
है आरजू कि फलक से जमीं जुड़ जाए मुंतज़िर वो, बस रस्ता खुद-ब-खुद मुड़ जाए , मुसव्विर की जिद भी भला पूरी होती है ? बस सूकून से हो , जिनकी कुर्बत वो रोज होती हैं।