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गरीब मजदूर...

गरीब मजदूर हूँ साहब मैं तो गरीब मजदूर हूँ साहब, धरती को अपना बिछोना बनाकर, गगन को अपना ओढ़ना बनाकर, हर दिन अपना एक नया भाग्य लिखकर, दिन-रात मेहनत करता हूँ , जब जाकर पाता हूँ , अपने परिवार की दो वक्त की रोटी, कभी-कभी तो भूखे ही रह कर सो जाता हूँ, मेहनत ही मेरी पूजा, मेहनत से कभी पीछे नहीं हटता, मेहनत से अपना हर अंजाम लिखता हूँ, मैं तो गरीब-मजदूर हूँ साहब, रोज एक नई जिंदगी लिखता हूँ साहब

By वैष्णव चेतन "चिंगारी"
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