“
गरीब मजदूर हूँ साहब
मैं तो गरीब मजदूर हूँ साहब,
धरती को अपना बिछोना बनाकर,
गगन को अपना ओढ़ना बनाकर,
हर दिन अपना एक नया भाग्य लिखकर,
दिन-रात मेहनत करता हूँ ,
जब जाकर पाता हूँ ,
अपने परिवार की दो वक्त की रोटी,
कभी-कभी तो भूखे ही रह कर सो जाता हूँ,
मेहनत ही मेरी पूजा,
मेहनत से कभी पीछे नहीं हटता,
मेहनत से अपना हर अंजाम लिखता हूँ,
मैं तो गरीब-मजदूर हूँ साहब,
रोज एक नई जिंदगी लिखता हूँ साहब
”