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घर को...

घर को धर्मशाला बना दिया था l ना जाने कहां कहां भटकता था l जितनी मनुष्य को घर की जरूरत है l उतनी ही घर को मनुष्य की जरूरत है l अभी भी वक़्त है देर नहीं हुई है l लौट कर घर चला जा, जी ले जिंदगी अपने लिए, अपनों के साथ ll

By DARSHITA SHAH
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