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ग़म-ए-हस्ती...

ग़म-ए-हस्ती हैं ही कुछ ऐसी दाग़ जो लगा था आज नहीं कल भी रहेगा, फ़ितरत-ए-ज़ीस्त है ही कुछ ऐसी ज़ख़्म लगा है तो ख़ून ही बहेगा ।

By Gairo
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