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दर्पण
य...
दर्पण
यदि मैं...
दर्पण
यदि...
“
दर्पण
यदि मैं साहित्य रचनाकार होती
सत्य समाज का दर्पण होता है।
बंद पलकों से भांप लेती
अंतःकरण के सूने पन को जांच लेती।
मंजुला पांडेय
”
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