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अनुभूति किसी के पराधीन नहीं हो सकती अनुभूति प्रकृति की अमूल्य देन हैं, हा! अनुभूति को परिष्कृत तथा अपरिष्कृत करना व्यक्ति की मनुष्याकृति व मनुष्यातीत की निजता हैं। अनुभूति को परिष्कृत करना एक सभ्य मानव का प्रमाण हैं जबकि अपरिष्कृत असभ्यता का प्रमाण।
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