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आज फिर खुद...

आज फिर खुद को हंसाने चला हूँ, रूठे हैं जो, उनको मनाने चला हूँ। उम्मीद, उम्मीद से है ज़्यादा मगर, अधूरे सपने को सजाने चला हूँ। गर्दिश में सितारे हैं तो क्या? अपने बेगाने हैं तो क्या? काँटों में राह बनाने चला हूँ, आज अपनी हस्ती दिखाने चला हूँ।®

By Rukhsana Bano
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