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SUNIL KUMAR GUPTA

Children Stories

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SUNIL KUMAR GUPTA

Children Stories

रंग

रंग

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रंगों की ये सोणी दुनिया,

बड़ी रंगीली लगती है।

रूप-लावण से भरपूर,

खूब सजीली लगती है।


जाने क्या सोचकर उस,

ख़ुदा ने जहां बनायी होगी।

लेकिन ये तो तय है कि

निज हाथों ही सजायी होगी।


नद-सर-सागर-वृक्ष-पहाड़,

कुदरत माँ के हैं उपहार।

कीट-मकोड़े, तितली-बगदुल,

रूप में जड़ते चाँद चार।


बन-गुलशन में गुलाब-बेली,

देखो, करती हैं अठखेली।

मस्त-मस्त झोंकों में मस्त,

पुटुश-परास देखो सहेली।


फुनगी पे बैठे तोता-मैना,

करते रहते चीं-चीं, टांय।

और वहाँ देखो वो चिड़िया,

कर रही है चांय-चांय।


गाँव-देहात में बाल-गोपाल,

निकले चराने को हैं ढोर।

तृणदल मुख में पागुर करते,

मचा रहे हैं जमकर शोर।


नीले-नीले अम्बर में वो,

बादलों की है नैया।

ऐसा लगता है मानो,

अंचरे में बुलाती मैया।


सांझ होने पे पच्छिम की,

लाली बड़ी सुहाती है।

सतरंगी दुनिया की झाँकी,

सिकुड़-सिमटती जाती है।



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