रंग
रंग
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रंगों की ये सोणी दुनिया,
बड़ी रंगीली लगती है।
रूप-लावण से भरपूर,
खूब सजीली लगती है।
जाने क्या सोचकर उस,
ख़ुदा ने जहां बनायी होगी।
लेकिन ये तो तय है कि
निज हाथों ही सजायी होगी।
नद-सर-सागर-वृक्ष-पहाड़,
कुदरत माँ के हैं उपहार।
कीट-मकोड़े, तितली-बगदुल,
रूप में जड़ते चाँद चार।
बन-गुलशन में गुलाब-बेली,
देखो, करती हैं अठखेली।
मस्त-मस्त झोंकों में मस्त,
पुटुश-परास देखो सहेली।
फुनगी पे बैठे तोता-मैना,
करते रहते चीं-चीं, टांय।
और वहाँ देखो वो चिड़िया,
कर रही है चांय-चांय।
गाँव-देहात में बाल-गोपाल,
निकले चराने को हैं ढोर।
तृणदल मुख में पागुर करते,
मचा रहे हैं जमकर शोर।
नीले-नीले अम्बर में वो,
बादलों की है नैया।
ऐसा लगता है मानो,
अंचरे में बुलाती मैया।
सांझ होने पे पच्छिम की,
लाली बड़ी सुहाती है।
सतरंगी दुनिया की झाँकी,
सिकुड़-सिमटती जाती है।
