बचपन का बिस्कुट
बचपन का बिस्कुट
1996 की गर्मी की छुट्टियाँ.
बचपन के दिन, छोटे भाई बहन और दोस्तों के साथ छुपा छुपाई खेल रहा था.
मै भी छुपा हुआ था कि तभी दूर से एक वृद्ध व्यक्ति कि झलक दिखी, देख कर लग रहा था कि शयद नाना थे.
फिर जैसे जैसे वो पास आते दिखे तो पक्का हो गया कि वो नाना ही थे. मै इस बात से बेखबर कि मै खेल, खेल रहा था नाना चिल्लाते हुए उनकी तरफ दौड़ा.
मै भूल गया था कि मुझे पकडे जाने तक छिपे रहना था.
लेकिन वो बचपना और नाना के प्रति प्रेम उन सब पर भरी पड़ गया.
घर में भी सब उनका स्वागत करने लगे. आज कि तरह पहले न फ़ोन हुआ करते थे न watsapp .
अतिथि जब घर पहुँचते थे तभी पता चलता था.
मै जाकर नाना कि गोद में बैठा था और तभी नाना ने हमारे बचपन कि याद हमे दी. वो भी 1 नहीं 2 .
2 Parle G बिस्कुट के पैकेट.
तब बिस्कुट हुआ करता था बिस्किट नहीं.
हमारे लिए वही सबसे महँगा गिफ्ट हुआ करता था. जब भी कोई मेहमान आता Parle G ज़रूर लाता और जाते समय 5 रुपये कि विदाई.
आज तो मार्केट में बहुत से बिस्किट हैं. Parle ने भी मार्केट में बने रहने के लिए और ऊंचाइयों पर जाने के लिए बहुत सी varieties निकाली पर हम जिनका बचपन 90 के दशक में बीता,
हमारे लिए Parle G सिर्फ बिस्किट नहीं, बिस्कुट है, एक एहसास है, उस पर बने बच्चे की फोटो की नक़ल करने में हमने अपने बचपन के पल बिताये हैं.
नाना आज नहीं है और बचपन भी. सब एक स्थिर तस्वीर पर उतर चुका है. बस Parle G है, जो बचपन और वो सब रिश्ते याद दिलाता रहेगा.
अब तो बच्चे खाते हैं बिस्किट,ये बिस्कुट न जान पायेंगे
कुछ कर तो नहीं सकता पर अफ़सोस रहेगा, मेरे बच्चे मेरा बचपन न जी पायेंगे