किसान
किसान
बगिया में कोयलिया बोलै, पिंजरे मा सुगनवा...!
हाय! किसनवा बोलैं, खेतवा में हरै, दाहिन-बाँव।।
हाय किसनवा बोलैं, ..................
भोर होत, खेतवा में, बैल लै के आवैं,
दिन भर खेतवा में, हर_वा चलावैं ...!!
चलतै चलत दिन भर, थक जाला पाँव ......!
हाय! किसनवा बोलैं, खेतवा में हरै दाहिन-बाँव ...।।
सांझ के लौटि के, घरवा जो आवैं,
खाई क पेट भर रोटिऔ न पावैं...!!
सुति जाँय, टुटही मड़हिया की छाँव ...।।
हाय! किसनवा बोलैं, खेतवा में हरै दाहिन-बाँव ।।
गरमी में मथवा से, चुएला पसिनवा,
देहिंयाँ ठिठुर जाला, माघ के महिनवा...!!
बरखा में...!-2 खटिअै पे चुएला ओराँव...।।
हाय! किसनवा बोलैं, खेतवा में हरै दाहिन-बाँव।।
सब दु:ख, देहिंया प, हँसि के उठावैं,
तब जा के, 'खेतवा' से, "सोनवा" उगावैं ।
कई डारैं जिंनगी का, धरती के नाँव...!!
हाय किसनवा बोलैं, खेतवा में हरै दाहिन-बाँव।।
केहसी हिअा, कै अपने बिरथा सुनावैं,
केहू ना किसानन के सुधि लेवे आवैं...!!
वोटवौ न डारब, हम अबकी चुनाव ...।।
हाय किसनवा बोलैं, खेतवा में हरै दाहिन-बाँव ।।