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है काँच की हिमाकत, या बिंब नस्तरी सी, या मुहर ही जिया पे जहर कर गया है | सरेआम यादों की तस्करी हो ... है काँच की हिमाकत, या बिंब नस्तरी सी, या मुहर ही जिया पे जहर कर गया है | सरेआम...