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अन्तर्मन में द्वंद है ये किस राह चलूं प्रतिबंध है ये, हूँ लुप्त अनन्त गगन में मैं क्यूँ राह नहीं... अन्तर्मन में द्वंद है ये किस राह चलूं प्रतिबंध है ये, हूँ लुप्त अनन्त गगन में ...
प्रस्थान तन जब भी करे उत्थान मन का हो अभी। प्रस्थान तन जब भी करे उत्थान मन का हो अभी।