नाकामयाब बेशक हूँ, नासाज़ नहीं। यलगार नहीं हूँ, पर हारी भी कोई आवाज़ नहीं। टुकड़े तो बेशक सौ दफ़ा किये हैं तुमने मेरे, और आगे भी करोगी, हक है तुम्हारा पर अब तेरे रवैये से ऐ ज़िदगी मैं नाराज़ नहीं।
नाकामयाब बेशक हूँ, नासाज़ नहीं। यलगार नहीं हूँ, पर हारी भी कोई आवाज़ नहीं। टुकड़े तो बेशक कई दफ़ा किये हैं तुमने मेरे और आगे भी करोगी, हक़ है तुम्हारा पर अब तेरे रवैये से ऐ ज़िंदगी मैं नाराज़ नहीं। - Kaustubh Srivastava