कहानी कविता को लिखने का शौक है। पढ़ना भी बहुत पसन्द है। अपनी कलम से जब भी कोई किरदार लिखती हूँ, खुद भी उसे उसके साथ ही जीती हूँ।
Share with friendsमैं तुम्हारी याद में बाबरी हो सारी दुनिया भूल जाती हूं, बताना तो क्या कभी तुम्हे मेरी थोड़ी सी भी याद आती है? महफिल में मैं अक्सर तन्हा हो जाती हूं और तन्हाई में तेरी यादों की महफिल सजाती हूं बोलो तो जरा क्या तुम्हे अकेले में भी कभी मेरी याद सताती है? अपनी हर खुशी में मैं हिस्सेदार तुम्हे बनाती हूं अपने हर गम को अश्क बना आंखों में तुझे छुपाती हूं, बोलो तो जरा क्या किसी पल में मेरी याद तुम्हारे दिल
जो लगाते है वृक्ष वो उनके फल कहां खा पाते है, पर वो नई पीढ़ी को अपनी एक धरोहर दे जाते है। न जाने कितने मुसाफिरों के सर पर छाया और न जाने कितने पक्षियों को रहने का सहारा दे जाते हैं। और जो मरने के बाद दाहसंस्कार में जला दिया जाता हैं एक वृक्ष, जाते जाते वो अपने ऊपर से ये कर्ज भी उतार जाता है।
जो उसपर कुल्हाड़ी चला था था उसे ही वो अपनी छाया में लिऐ था। इंसा ने अपना कर्तव्य छोड़ मतलब सिद्ध किया था पर वृक्ष ने अपना स्वभाव नहीं छोड़ा था।
हाड़ कपाऊं सर्दी में उस भिखारी को किसी ने स्वेटर दान किया था पर उसे बाहरी सर्दी से ज्यादा पेट की आग से तकलीफ थी इसलिए वो स्वेटर वहीं का वहीं पड़ा था।
हम मुस्करा कर सारे गम सह गये, उनको लगा कि मुझे कोई गम ही नहीं। सुलझाते रहे उनकी मुश्किलें हम, अपनी मुश्किल किसी को बता न सकें। उनकी उदास आँखों को भी पढ़लिया हमने, वो मेरे हद से ज्यादा मुस्कराने की वजह जान न सके। यूँ तो थे अपने हजारों लोग, पर उन हजारों की भीड़ में हम किसी को अपना बना न सके।
माँ के लिये उसका बच्चा कितना भी बड़ा हो बच्चा ही रहता है। और बिन माँ के बच्चा बचपन में ही बड़ा हो जाता है।