“
हम मुस्करा कर सारे गम सह गये,
उनको लगा कि मुझे कोई गम ही नहीं।
सुलझाते रहे उनकी मुश्किलें हम,
अपनी मुश्किल किसी को बता न सकें।
उनकी उदास आँखों को भी पढ़लिया हमने,
वो मेरे हद से ज्यादा मुस्कराने की वजह
जान न सके।
यूँ तो थे अपने हजारों लोग,
पर उन हजारों की भीड़ में हम
किसी को अपना बना न सके।
”