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मैं तुम्हारी याद में बाबरी हो सारी दुनिया भूल जाती हूं, बताना तो क्या कभी तुम्हे मेरी थोड़ी सी भी याद आती है? महफिल में मैं अक्सर तन्हा हो जाती हूं और तन्हाई में तेरी यादों की महफिल सजाती हूं बोलो तो जरा क्या तुम्हे अकेले में भी कभी मेरी याद सताती है? अपनी हर खुशी में मैं हिस्सेदार तुम्हे बनाती हूं अपने हर गम को अश्क बना आंखों में तुझे छुपाती हूं, बोलो तो जरा क्या किसी पल में मेरी याद तुम्हारे दिल
”