ग़म का जरिया तू बन गया, यूं जो मुझे तू छोड़ गया, मिल जा मुझे तू एक दफा, मेरी इबादत तू बन गया, कर दे मूझपे नज़र ए करम, टूटे दिल के सारे भरम, तेरे बिन अब ना लेंगे एक भी दम, तुझे कितना चाहने लगे हम, २ तेरे साथ हो जाएंगे ख़तम, तुझे कितना चाहने लगे हम,
इश्क़ में रुसवा ख़ुद होकर, वो हमको बेवफ़ा कहते हैं, वो हुए हमसे हैं दूर मगर, अब भी इस दिल में रहते हैं,
एक उनकी ही दुआ से अब तक आबाद हूं मैं, उनकी कई वर्षों की तपस्या का मौखिक अनुवाद हूं मैं, उनकी आकांक्षाओं का अपेक्षित परिणाम हूं मैं, उस मां के संस्कारों से सुसज्जित प्रताप हूं मैं,
थोड़ा बेचैन ज़रूर हूं मैं, फिर भी तेरी दीद की प्यास है मुझे। किसी और का तो पता नहीं पर, तुझ पर सच मुच विश्वास है मुझे।
कोई ख़ुशी के नगमे पिरो रहा है, तो कोई अपने दर्द में तन्हा रो रहा है, कोई किसी के ख्यालों में खो रहा है, तो कोई बेखबर बेफिकर सो रहा है, ये वो दौर है जनाब, जहां कोई शक्स, नए रिश्तों की ज़िम्मेदारी, तो कोई टूटे रिश्तों की जुदाई का बोझ ढो रहा है,
उन आंखों में छुपा दर्द देख कर ये दिल भी मेरा रो गया, जबसे जुड़ा ये दर्द का रिश्ता वो प्यार मुझे भी हो गया,
ऐसा नहीं है, के हमेशा से तन्हा थे हम, कुछ रोज़, मोहब्बत भी मिली थी हमें, पर तनहाई इस हद तक शुमार थी रगो में हमारे, के उसे निभाने का तब सलीखा ना आया हमें, जब निभाने का सलीख सीख लिया हमने, तो फिर कभी वो मोहब्बत ना मिली हमें,
ना जाने किस राह पर चलती गई ज़िंदगी, अनजानों से दिल क्यूं लगती गई ज़िंदगी, है ना जाने किस मंज़िल तक का सफ़र ये, के राह में रहनुमा बनके बस साथ चलती गई ज़िंदगी