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कोई ख़ुशी...

कोई ख़ुशी के नगमे पिरो रहा है, तो कोई अपने दर्द में तन्हा रो रहा है, कोई किसी के ख्यालों में खो रहा है, तो कोई बेखबर बेफिकर सो रहा है, ये वो दौर है जनाब, जहां कोई शक्स, नए रिश्तों की ज़िम्मेदारी, तो कोई टूटे रिश्तों की जुदाई का बोझ ढो रहा है,

By Mohit Kothari
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