MAnNisha Misha
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ज़ज्बातो को लफ़्ज़ों में उतार एक ऐसी ज़मी तैयार करना जहाँ हर एक के एहसास मुक़ाम पाते हों । हिंदी से एम . ए पंडित ललित मोहन शर्मा गढ़वाल विश्वविद्यालय लेखन ...बरसात की एक शाम कविता संग्रह औरत दास्ताँ एक दर्द की नाट्य विद्या जिंदगी कैसी है पहेली नाट्य विधा सूफियाना इश्क़ e book अनेक पत्र पत्रिकाओं... Read more

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शुभ सुबह दोस्तो कुछ महकी सी हैं ज़ुस्तज़ु-ए-मेरी एहसास-ए-तसब्बुर में तू समाया स है..... MAnNisha misha

चार क़दम और चांद भी हो ऐसे कैसे कब होता है पानी में परछाई देखो जब चाहो वो तब होता है । MAnNisha misha

फ़िज़ा भी रूहानी है एक चुप सी कहानी है तुम गूंजते हो अलफ़ाज़ में मेरे फिर भी सब कहते हैं ख़ामोशी की रवानी है ..। MAnNisha misha

फ़िज़ा भी रूहानी है एक चुप सी कहानी है तुम गूंजते हो अलफ़ाज़ में मेरे फिर भी सब कहते हैं ख़ामोशी की रवानी है ..। MAnNisha misha

वो ख़्याल ही था जो अल सुलझी लटो पर आ कर उलझ गया वरना तो पास से गुजरने की इजाज़त हवा को भी न थी । MAnNisha misha

मुझे मेरे आइने ने अक्सर यूं संभाला है दिखा कर औकात मेरी मुझे ज़मी पर ही ढाला है । MAnNisha misha

मेरी हर बात पर उसने कयामत दाग दी यारों कोई जा कर कह दे उससे हम यूं नहीं बिखरा करते । MAnNisha misha

कुछ ख़्वाब क्रंदन करते हैं कुछ ख़्वाब स्पंदन करते हैं सजते हैं दोनों ही आंखों में फिर कैसे ये अंतर करते हैं । MAnNisha misha

खुवाहिशों के भँवर में मैंने खुद को उलझते देखा जो सफ़र संग शुरू हुआ था आज वो तन्हा रह गया है ....! MAnNisha misha


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