इस जिंदगी के खेल में
नयी अगर बिसात हो
फिर हारने का खौफ क्या
बस जीतने की बात हो
नई डगर नया सफर
नई जो शुरुआत हो
जिंदगी के खेल में
नई अगर बिसात हो
तो उदासियों का खौफ क्या
न गमों की कोई रात हो
फिर जिंदगी ये जश्न हो
नायाब इक सौगात हो
जिंदगी की दौड़ में
ठहरना मजबूरी है
लॉकडाउन यह बता रहा
सब्र करना ज़रूरी है
लॉक-डाउन ने बता दिया है
जीने का सलीका
जीवन में जो सीख न पाए
सबने अब है सीखा
पत्थर-सा सशक्त हृदय यह
फूलों से छिल जाता है
संकट में है अडिग-बहादुर
भावों से हिल जाता है
पिता का प्रेम है मधुर सरस जो मन में भरे उमंग
माँ की ममता पानी जैसी स्वाद न कोई रंग
जैसे जल बिन जीवन नाहीं मीन हो या मतंग
वैसे माँ के बिन है जीवन जैसे कटी पतंग
हर डोर से मजबूत है, जो डोर है विवाह की
नहीं तोड़ने की सोचना, यह शपथ है निर्वाह की
समय संग बढ़ती निरन्तर, गहराई इसमें चाह की
दु:खों की धूप जो मिटा दे, वह छाँव है यह राह की
हित के साथ जो रहे सर्वदा
वही साहित्य कहलाता है
सुधीजनों के द्वारा सृजित वह
सुन्दर कृत्य कहलाता है
जीवन तो है खेल हम हैं एक खिलौना मात्र
ऊपरवाला संचालक और हम नाटक के पात्र