बहा रहे जो उल्टी गंगा, पा रहे वो बधाई भी कुछ दे नहीं रहे जहाँ को और मिटा रहे खुदाई भी बागवां है बाग के जो, वो लुटा रहे अमराई भी तारीख में नाम लिख, शरमा रहीं रोशनाई भी... #संजयशेष
सुना है कि एक ही फरियाद सुनकर, रब आ जाते थे दरबारों में मगर अब तो दस्तक भी देनी पड़ती है हजारों में #संजयशेष
चलना 🚶 तो था साथ तुम्हारे मगर बेड़ियाँ बंध गई है पांव में अब तलक अकेले ही चलते रहें हैं धूप में ताकि लोग बैठ सके सुकून से छांव में #संजयपठाड़ेशेष