अनूप सिंह चौहान ( बब्बन )
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अपने बारे में मैं खुद बता क्या कहूँ, मियां मिट्ठू कहे ज़माना मुझे, इससे बेहतर है ये के चुप मैं रहूँ । इंदौर में रहता हूँ एक कवि बनने की यात्रा पर हूँ, ज्ञान का भूखा हूँ भारत मे पैदा होने पर गर्व है ......मैं जो हूँ मैं वो हूँ, I am what I am

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साहिब ये हिज़्र किसी कमाल से कम नहीं इसमें न मिलने का मलाल है पर कोई गम नहीं

दरवाज़े दिलों के बहूत खूबसूरत होते है क्योंकि ये बंद नहीं होते सिर्फ बंद से दिखते हैं अनूप सिंह चौहान

कि गुनाह-ए-अज़ीम भी हमको, जन्नत से बचा न सका, क़ुसूर सिर्फ इतना था कि मोहब्बत, शिद्दत से निभा गए हम |

वो खुद आते मुझसे कहते, आखिर मेरा ज़ुर्म था क्या। वो ना आते लिख पहुंचाते, आखिर मेरा ज़ुर्म था क्या। खुद को खो कर उनको चाहा, रब बना लिया सजदा भी किया, वो इश्क इबादद सा था जिया, इतने पर भी इतना न हुआ, वो मेरी रूह को ही समझाते, आखिर मेरा ज़ुर्म था क्या।


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