Salil Saroj
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सलिल सरोज जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी... Read more

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तुम नाहक ही मेरा कद पूछते हो जो बेहद है,उसकी हद पूछते हो

होंठों पर गुलाब, आँखों में शराब दे खुदा हुस्न दे , तो फिर बेहिसाब दे लिहाज में होके कौन देख पाएगा तुझे तुझे देखने के लिए नियत भी ख़राब दे

जो खून चाहते हैं वो अब अखबार पढ़ते हैं फिर हादसे और कत्ल की बाज़ार पढ़ते हैं जो दिखा करती थी आयतें कभी मीनारों पे उसे खूनी दरिन्दे जानलेवा औजार पढ़ते हैं सलिल सरोज

मुझे समेट लो अपनी बाँहों में मैं इक सदी से बिखरा पड़ा हूँ मुझे भी चमका दो शहर जैसे मैं गांव मानिंद उजड़ा पड़ा हूँ सलिल सरोज

इक ही कोशिश पर साँसें जब उखड़ने लगीं नेताजी कहते हैं यहाँ तो मुआमलात बहुत हैं बहुत ही रंगीन दिखता है टी वी अखबारों में वरना इस मुल्क की नाज़ुक हालात बहुत है सलिल सरोज

तेरा रूमानी अहसास मुझे छोड़ता कहाँ है होंठों पर बसा तेरा बोसा* छोड़ता कहाँ है सलिल बोसा*-चुम्बन

तुम क्या थे मेरे लिए,अब मेरी समझ में आता है बादल छत पर मेरे , बिना बारिश गुजर जाता है मेरा घर, मेरे घर की दीवारें और चौक - चौबारे बिना तेरे अक्स के चेहरा सब का उतर जाता है सलिल सरोज

तुम ही से सब खुशियाँ इख़्तियार हैं दो जहान की कायदे से एक दफे खुद को फिर जिला के तो चलो अब भी आपके भींगे होंठों पे शबनम चमक उठेंगी अपने हुश्न को तिलिस्मी सा ख्वाब दिला के तो देखो सलिल सरोज कार्यकारी अधिकारी लोक सभा सचिवालय संसद भवन नई दिल्ल

खत पढ़ते भी रहे और डरते भी रहे ताउम्र यूँ ही मोहब्बत करते भी रहे एक आरज़ू थी साथ-साथ जीने की इसी आरज़ू पर रोज़ मरते भी रहे खता क्या थी हम गैर- मजहबी थे बिना गलती जुर्मान भरते भी रहे salil saroj


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