Rahim Khan
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बड़ी मुश्किल से नकाब उठे थे हुस्न की दुनिया से मुश्किल से आंखें बची है मास्क चढ़ गए उसी दुनिया पे।

यूँ ग़ज़लें लिख लिख कर, अपनी तस्वीर तगाती हो तस्वीर पे ग़ज़ल लिख देंगे, हमारे ज़जबात जगाती हो। तस्वीर असली है या फिर अपना रूप छिपाती हो हम लिखना भूल चुके है, फिर नज़रों से क्यों सिखाती हो। रहीम " नादान"

यूँ ग़ज़लें लिख लिख कर, अपनी तस्वीर तगाती हो तस्वीर पे ग़ज़ल लिख देंगे, हमारे ज़जबात जगाती हो। तस्वीर असली है या फिर अपना रूप छिपाती हो हम लिखना भूल चुके है, फिर नज़रों से क्यों सिखाती हो। रहीम " नादान"

जुलेखा ना बन ; कोई युसफ कहाँ है इस जमाने में जिस्म की हवस में रूह जलाए जाते हैं इस जमाने में। रहीम "नादान"

जुलेखा ना बन ; कोई युसफ कहाँ है इस जमाने में जिस्म की हवस में रूह जलाए जाते हैं इस जमाने में। रहीम "नादान"

लश्कर बना कर चल दिए कफन उठा के न देखा कब्र की मुश्किलें गिना दफन की मौज मनाते देखा। रहीम "नादान"

चाँद अपनी राह भटक जाएगा ; यों सितारे चहरे पे सजा के चला ना करो। जान ले लोगी किसी मरीजे हुशन का ; यों बदन हिला के चला ना करो। नादान

हमें बाग ए सद्दाद तेरा तलब नहीं हम बसर करते हैं जिस बहर में तुझे उसकी खबर नहीं। नादान

जब मर्जे जिस्म को दवा की दरकार थी ; तब कोई तबीब ना मिला । जब जिंदा रहने की कोई उम्मीद न रही ; तब कोई रकीब ना मिला। नादान


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