_ "Kridha"
Literary Colonel
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मेरी कहानियों , कविताओं , कोट्स को पढ़कर और उनके बारे में अपने विचार रखकर , लाइक करने का आप सभी पाठक गण को हार्दिक आभार। आप यहां तक आते है और अपना समय निकाल कर हमारी रचनाओं को पढ़ते है उसके लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद्

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कांच की तरह टूटकर बिखरी हूं मैं, अब चुभती हूं तो , नाराजगी कैसी

मेरा उससे रिश्ता निराला है, मैं मोर मुकुट हूं उसकी , वो मेरा बंशी वाला हैं _Kridha

ख़ुद की जिदंगी से तो दुःखी हैं ,औरों की शिकायते करते हैं, ये वो लोग होते हैं , जो दूसरों की बातों पे जज और ख़ुद की बातों पे वकालत करते हैं

मैं चाहता हूं , खुदा तू मिल मुझे कही, मैं पूछूं तुझसे बस इतना , जो था मेरा वो , तो मुझे मिला क्यों नहीं _Kridha

मैं नहीं बाट पाया इंसान को स्त्री और पुरूष मैं, मेरे वजूद में दोनों शामिल जो थे

हाथ की लकीरों में भाग्य अच्छा नहीं था , फ़िर भी हार नहीं मानी हैं, हाथ में अंगुलिया जो दी हैं भगवान ने, अब उनसे कर्म करने की बारी हैं _Kridha

ख्वाईश रखो तो इतनी की आसमान छूना हैं, याद रखो तो इतना की जमीं पे चलना हैं, टिम टिमटिमाते तारों के बीच एक चांद बनना हैं, थोड़ा ढलना हैं , थोडा चलना हैं , गिरकर फ़िर संभलना हैं _Kridha

निभाने वाले तो बिना रस्मों - रिवाज़ के निभा लेते हैं, और तुम आज भी सात फेरों के वचनों में उलझे हो _Kridha

बहुतों ने कोशिश की थी हमें मारने की, एक तुम आए और ज़िंदगी से नफरत हो गई _Kridha


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