इतने सालों बस पढ़ते रहे। अब कुछ कुछ लिख रहे हैं। बस यूं ही ,जो मन आये।
Share with friendsये झूले क्यों बुला रहे हैं मोर वृथा ही नाच रहे हैं कोयल काहे शोर मचाये ह्रदय में पीड़ा बढ़ा रही है भाड़ में जाए नंदन -कानन आये नहीं हैं मेरे साजन :अपराजिता 'अजितेश' जग्गी
आंसू झर -झर बरस रहे है टूटे वादे बिखर रहे हैं मेघों को क्या हाल सुनाएँ वो तो यूं ही हर्ष रहे हैं पतझड़ आजा आनन-फानन बस संग लाना मेरे साजन :अपराजिता 'अजितेश' जग्गी
बैरी सावन क्यों मनभावन साथ नहीं जब मेरे साजन ये बूंदें क्यों नाच रही हैं, बिजली काहे दमक रही है, क्यों मेघा हैं ताल सुनाते विरह की अग्नि सुलग रही है सब बेरंग है बस इक कारन पास नहीं हैं मेरे साजन :अपराजिता 'अजितेश' जग्गी
किस्से -कहानी तो सब वो ही पुराने हैं अंदाजे बयां बदले वो नए हो गए ; करोड़ों -अरबों किस्सों की भीड़ में कुछ किस्से ऐसे निकले जो सही हो गए : :अपराजिता 'अजितेश ' जग्गी
आज भी उतनी ही शिद्दत से खत लिखते हैं कोई दूजा न पढ़े,अपने खत हम खुद पढ़ते हैं इश्क तो अपने जर्रे जर्रे में बसा है गैरों से नहीं खुद ही से करते हैं आंसूंओं से डरने की जरूरत ही नहीं रुमाले -हिम्मत हमेशा पास में ही रखते हैं -अपराजिता 'अजितेश' जग्गी
तन्हाईयाँ भाने लगीं हैं कुछ इस तरह कि दिल भी चाहे तुझसे विरह मिलन में कई बंदिशें भी लगेंगी विरह में बस मीठी यादें सदा -सदा संग रहेंगी
आज फिर आँख से एक आंसू बहा आज फिर बेवफा मुझ को याद आ गया ; दर्दे दिल जो छुपाया था, गहरा कहीं जिक्र उसका सुना , झट से बाहर आ गया : :अपराजिता जग्गी