Vishu Tiwari
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मैं विजय हूं लोग पाना चाहते हैं, मुझको पाकर खिलखिलाना चाहते हैं।

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फरेबी दुनिया में मुहब्बत कौन देखता है। मतलबी लोगों को बस रुतबे से वास्ता।।

शक की दवा क्या है, सितम की इन्तहा क्या है, क्या करें हम गलत हैं तो हैं, मन के वहम का दवा क्या है?

दर्द सहन तू करता चल, तू धीरे धीरे बढ़ता चल, मंजिलभी मिल जाएगा, रे पथिक अथक यूं चलता चल।।

हमें आदत थी रिश्तों में शक्कर की तरह घुल जाने की। अब याद आया कि जमाना तो शुगर फ्री हो गया है।।

कब तक छल से तुम सारा संसार खरीदोगे, कब तक बल से तुम अपना अधिकार जमाओगे, कमजोरों के सीने पर पग रख कर बढ़े तो क्या, आखिर इस दुनियां में तुम कातिल कहलाओगे।।

किस बात पर गुमान करूं जो है सब तेरा है।

दर्द से कराह रहा युवा , बेरोज़गारी में बेकार युवा, पथ से हरपल भटक रहा, जीवन से हार रहा युवा।।

मही ओढ़ कर धानी चूनर , यौवन मन को हर्षाए, आलिंगन करने को आतुर , ऋतुराज मिलने आए, रंग बिरंगे परिधानों में , धरा सजी दुल्हन जैसी, पुरवाई मदहोश करे औ, बागों में कोयल गाए।। ©® कुमार@ विशु

सच्चे प्रेम हो तो वासना स्वत: मिट जाती है।


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