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मही...
मही ओढ़ कर धानी...
मही ओढ़ कर...
“
मही ओढ़ कर धानी चूनर , यौवन मन को हर्षाए,
आलिंगन करने को आतुर , ऋतुराज मिलने आए,
रंग बिरंगे परिधानों में , धरा सजी दुल्हन जैसी,
पुरवाई मदहोश करे औ, बागों में कोयल गाए।।
©® कुमार@ विशु
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