Govt.Teacher and writer
Share with friendsजो अपना नहीं है उसे क्यों आजमाएं हम खुदगर्जी के झूठे ख्याब क्यों आंखों में सजाएं हम ये दुनियाँ का तिलिस्म है यहां दिल को किस तरह हर रोज भरमाएँ हम।
जो अपना नहीं है उसे क्यों आजमाएं हम खुदगर्जी के झूठे ख्याब क्यों आंखों में सजाएं हम ये दुनियाँ का तिलिस्म है यहां दिल को किस तरह हर रोज भरमाएँ हम।
क्यों खुशी रास आती नहीं ज़िन्दगी के हर मोड़ पर क्यों मिला कोई साथी नहीं यूँ तो महफिलों के दौर चलते रहे ताउम्र मगर लबों पे मेरे क्यों मुस्कान आती नहीं। जहमत में गुलशन है मेरा ,तुम करार क्या दोगे मेरे तमाम सवालों के जबाब ज़िन्दगी लाती नहीं।
जो तुम्हें चाहिए था वो तो तुम्हे मिल ही गया दस्तूर ज़िन्दगी का हम निभाते रहेंगे। दो कदम साथ तुम चल न सकें हम जन्मों के सफर पर है तुम्हारे कदमों से कदम मिलाते रहेंगे।
कितने गूढ़ है ज़िन्दगी के रहस्य अक्सर सोचती हूँ मैं जो लिखा नहीं कहीं मन क्यों उसे पढ़ता है कभी शहद सी मीठी,कभी नीम सी कड़वी फिर सोचा चलो रहस्य सुलझाते है ज़िन्दगी को अपने लिए फिर से मोड़ लाते हैं।
कितने गूढ़ है ज़िन्दगी के रहस्य अक्सर सोचती हूँ मैं जो लिखा नहीं कहीं, मन क्यों उसे पढ़ता है कभी शहद सी मीठी,कभी नीम सी कड़वी फिर सोचा चलो रहस्य सुलझाते है ज़िन्दगी को अपने लिए फिर से मोड़ लाते हैं।