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कितने गूढ़...

कितने गूढ़ है ज़िन्दगी के रहस्य अक्सर सोचती हूँ मैं जो लिखा नहीं कहीं, मन क्यों उसे पढ़ता है कभी शहद सी मीठी,कभी नीम सी कड़वी फिर सोचा चलो रहस्य सुलझाते है ज़िन्दगी को अपने लिए फिर से मोड़ लाते हैं।

By RAJSHRI YADAV
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