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'जल रही सदभावना की, बेल बरगद पी रहे विष, शेष क्या आधार जिस पर, रात, दिन पलते निरामिष।' एक सुंदर प्रे... 'जल रही सदभावना की, बेल बरगद पी रहे विष, शेष क्या आधार जिस पर, रात, दिन पलते निर...