खुशियों के मौके हो तो ज़िन्दगी हसीन लगती है, मौके ग़म के हो तो ज़िन्दगी बोझ लगती है, सुख और दुख से झूझती ज़िन्दगी कभी-कभी... बस साँसों और धड़कनों का संगम लगती है। 📝संगीता अशोक कोठारी 📝
खुशियों के मौके हो तो ज़िन्दगी हसीन लगती है, मौके ग़म के हो तो ज़िन्दगी बोझ लगती है, सुख और दुख से झूझती ज़िन्दगी कभी-कभी... बस साँसों और धड़कनों का संगम लगती है। 📝संगीता अशोक कोठारी 📝
मेरे हौसलों को यूँ कम ना आँको, ना ही बार-बार मेरे गिरेबाँ में झाँको, जीवन में चाहते यदि बुलंदियाँ छूना.. तो ये ज़मीन,आसमान एक कर दो।।
गीता का ज्ञान पुस्तक में सिमट कर रह गया, भौतिकता की चाह आध्यात्मिकता डकार गया, ईर्ष्या,द्वेष,राग,लोलुपता भरी दिलोदिमाग़ में, फिर ख़्वाबों की उड़ान भरने आसमान कम पड़ गया। 📝संगीता अशोक कोठारी 📝
#नज़ाकत # हमसफ़र संग ज़िन्दगी के सफ़र में रूहानियत भरपूर थी, तुम,तुम्हारे लिए और तुम्हीं तक ज़िन्दगी की हर चाह थी, रिश्ते में थोड़ी मर्यादा,थोड़ी रुस्वाईया थोड़ी इज्जत भी थी, पर रोज रोज के क्लेश ने रिश्ते की रूहानी नज़ाकत तोड़ दी।। 📝संगीता अशोक कोठारी 📝
जिनकी नसीहतें सहेजकर रखनी थी, उनकी वसीयतों पर नज़र अटकी थी। 📝संगीता अशोक कोठारी 📝 🙏🙏पितृ पक्ष /श्राद्ध /तर्पण 🙏🙏
🌹औलाद 🌹 1) भूखे भी रहे रुठे भी रहे और मनाते भी रहे, एक औलाद के खातिर जाने कितने जतन किये। 2) कभी डाँटकर कभी पूचकारकर लालन पालन करते रहे, पर औलादों के पर निकले तो परिंदे जैसे आसमां में उड़ गए।। 📝संगीता अशोक कोठारी 📝
1) एक तेरा साथ तो कठिन राहें आसान थी, तेरा साथ ही था तो लगा मंजिल पास थी, माना ज़िन्दगी की यात्रा बहुत ही लम्बी थी पर कोई शिकवा नहीं क्योंकि तू साथ थी। 📝संगीता अशोक कोठारी 📝 2) साथ ये लम्हें सुखद तेज हमारी चाल थी, भाल पर तुम्हारी लटे,मुझसे टकरा रही थी स्पन्दन बदन से होकर पंहुचा रूह में भी, वो स्पर्श,वो ख़ुशी पहली दफ़े महसूस की 📝संगीता अशोक कोठारी 📝