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कभी नज्म सा, कभी ग़ज़ल सा मेरे सुरों को पिरोता तू - एक जज्बात सा है। कभी नज्म सा, कभी ग़ज़ल सा मेरे सुरों को पिरोता तू - एक जज्बात सा है।