www.utkarshkavitawali.in
Share with friendsतुझको जाना, तुझको चाहा, तू ही तो इक यार मेरा नहीं यथार्थ हो सका,हो ऐसा, भावों का संसार मेरा प्रेम किया मैंने तुमसे, मैं करता ये इनकार नहीं आदि -अंत “उत्कर्ष” प्रेम, इक ये ही तो आधार मेरा - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
कान्हा का हूँ दास प्रिये, जिह्वा पर राधे नाम रहे मेरे प्रति कोई क्या सोचे, मुझको ना इससे काम रहे प्रेम के पूरक हैं दोनों, दोनों ने प्रेम सिखाया है प्रेम अमिट अभिलाषा है जो, मेरी आठो याम रहे - नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष