सर्द کی Dhoop ख़ुशनसीब है ये धूप जो ज़ुल्फो से छन कर तेरे रुख्सार को छू जाती है। हसद है मुझे इससे हम तो तेरे अक्स तक भी नही पहुँच पाते है। Shah Talib Ahmed
लम्हा था सफ़र हो गया। अजीज़ वो मुझे इस क़दर हो गया। लबों पर आया जो नाम तेरा। लगता है उसी का असर हो गया। इत्मिनान का वो शज़र हो गया। जब करीब से आपका गुज़र हो गया । वो अनजान शक़्स। अजीज़ मुझे इस क़दर हो गया । Shah Talib Ahmed
तू ही ज़िन्दगी का सहारा है। वार्ना इतने फासले होने के बावजूद। कैसे तू मेरा साया । और मेरा वजूद तुम्हारा है। Shah Talib Ahmed
उन्हें तो क़त्ल भी करना है। मुज़रिम भी नहीं कहलाना है। उन्हें ग़लत ना कहो वो ख़ूबसूरत है अग़र कोई ग़लत है तो वो ये ज़माना है। Shah Talib Ahmed
उनसे मुख़ातिब होते वक़्त क़लम भी साथ रखता हूँ। नाफ़रमानी ना हो जाये उनके हर हुक्म को दरयाफ़्त रखता हूँ। उन्हें लगता है भूल जाता हू में । कोई बताओ उन्हें उनको ज़ेहन में हर लम्हा साथ साथ रखता हूँ। शाह तालिब