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लम्हा था...

लम्हा था सफ़र हो गया। अजीज़ वो मुझे इस क़दर हो गया। लबों पर आया जो नाम तेरा। लगता है उसी का असर हो गया। इत्मिनान का वो शज़र हो गया। जब करीब से आपका गुज़र हो गया । वो अनजान शक़्स। अजीज़ मुझे इस क़दर हो गया । Shah Talib Ahmed

By Shah Talib Ahmed
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